जव्वाद शेख की ग़ज़ल: अर्ज़-ए-आलम बा-तर्ज़-ए-तमाशा भी चाहिए
अर्ज़-ए-आलम बा-तर्ज़-ए-तमाशा भी चाहिए
दुनिया को हाल ही नहीं हुलिया भी चाहिए
ऐ दिल किसी भी तरह मुझे दस्तयाब कर
जितना भी चाहिए उसे जैसा भी चाहिए
दुख ऐसा चाहिए कि मुसलसल रहे मुझे
और उसके साथ साथ अनोखा भी चाहिए
एक ज़ख्म मुझे चाहिए मेरे मिज़ाज का
यानी हरा भी चाहिए गहरा भी चाहिए
एक ऐसा वस्फ़ चाहिए जो सिर्फ मुझमें हो
और उसमें फिर मुझे याद-ए-तुला भी चाहिए
रब-ए-सुखन मुझे तेरी यकताई की क़सम
अब कोई सुन के बोलने वाला भी चाहिए
क्या है जो हो गया हूँ मैं थोड़ा बहुत खराब
थोड़ा बहुत खराब तो होना भी चाहिए
हंसने को सिर्फ होंट ही काफ़ी नहीं रहे
‘जावद शेख’ अब तो कलीजा भी चाहिए
प्रत्येक शेर का अर्थ
आलम की अर्ज़ तमाशे के तर्ज़ पर भी चाहिए।
दुनिया को हाल ही नहीं हुलिया भी चाहिए।
आज एक और साल बीत गया उसके बिना।
जिसके होने से मेरे ज़माने होते थे।
ऐ दिल किसी भी तरह मुझे उपलब्ध कर।
जितना भी चाहिए उसे जैसा भी चाहिए।
दुख ऐसा चाहिए जो लगातार रहे।
और उसके साथ अनोखा भी चाहिए।
एक ज़ख्म मेरे मिज़ाज का चाहिए।
यानी हरा भी और गहरा भी चाहिए।
एक ऐसा गुण चाहिए जो सिर्फ मुझमें हो।
और उसमें याद-ए-तुला भी चाहिए।
रब-ए-सुखन तेरी यकताई की क़सम।
अब कोई सुनकर बोलने वाला चाहिए।
क्या है जो मैं थोड़ा खराब हो गया।
थोड़ा खराब तो होना चाहिए।
हंसने के लिए सिर्फ होंट काफी नहीं।
अब तो कलीजा भी चाहिए।
ग़ज़ल में प्रयुक्त प्रमुख उर्दू शब्दों के अर्थ
- अर्ज़-ए-आलम: दुनिया की पेशकश (presentation of the world)।
- तर्ज़-ए-तमाशा: तमाशे का अंदाज़ (style of spectacle)।
- हुलिया: रूप या वर्णन (appearance or description)।
- दस्तयाब: उपलब्ध (available)।
- मुसलसल: लगातार (continuous)।
- मिज़ाज: स्वभाव (temperament)।
- वस्फ़: गुण या विशेषता (attribute)।
- यकताई: एकता या अद्वितीयता (uniqueness)।
- कलीजा: जिगर या हिम्मत (liver or courage)।
- रब-ए-सुखन: शब्दों का रब (lord of speech)।
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