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जावेद अख्तर की ग़ज़ल: जिधर जाते हैं सब जाना उधर अच्छा नहीं लगता

 


जावेद अख्तर की ग़ज़ल: जिधर जाते हैं सब जाना उधर अच्छा नहीं लगता


जिधर जाते हैं सब, जाना उधर अच्छा नहीं लगता
मुझे पामाल रस्तों का सफ़र अच्छा नहीं लगता

ग़लत बातों को ख़ामोशी से सुनना, हामी भर लेना
बहुत हैं फ़ायदे इसमें मगर अच्छा नहीं लगता

मुझे दुश्मन से भी ख़ुद्दारी की उम्मीद रहती है
किसी का भी हो सर, क़दमों में सर अच्छा नहीं लगता

बुलंदी पर इन्हें मिट्टी की ख़ुश्बू तक नहीं आती
ये वो शाखें हैं जिनको अब शजर अच्छा नहीं लगता

ये क्यों बाक़ी रहे आतिश-ज़नो, ये भी जला डालो
कि सब बेघर हों और मेरा हो घर, अच्छा नहीं लगता


प्रत्येक शेर का अर्थ

सब जहां जाते हैं, वहां जाना अच्छा नहीं लगता।
मुझे रौंदे हुए रास्तों का सफर अच्छा नहीं लगता।

गलत बातों को चुपचाप सुनना और सहमति जताना।
इसमें बहुत फायदे हैं लेकिन अच्छा नहीं लगता।

मुझे दुश्मन से भी स्वाभिमान की उम्मीद रहती है।
किसी का भी सिर पैरों में अच्छा नहीं लगता।

ऊंचाई पर इन्हें मिट्टी की खुशबू नहीं आती।
ये वो शाखाएं हैं जिन्हें अब पेड़ अच्छा नहीं लगता।

ये आग लगाने वाले क्यों बाकी रहें, इन्हें भी जला दो।
कि सब बेघर हों और मेरा घर हो, अच्छा नहीं लगता।

ग़ज़ल में प्रयुक्त प्रमुख उर्दू शब्दों के अर्थ

  • पामाल: रौंदा हुआ (trampled)।
  • रस्तों: रास्तों (paths)।
  • ख़ामोशी: चुप्पी (silence)।
  • हामी: सहमति (agreement)।
  • ख़ुद्दारी: स्वाभिमान (self-respect)।
  • बुलंदी: ऊंचाई (height)।
  • ख़ुश्बू: खुशबू (fragrance)।
  • शजर: पेड़ (tree)।
  • आतिश-ज़नो: आग लगाने वाले (fire-starters)।
  • बेघर: बेघर (homeless)।

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