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तहज़ीब हाफी की मशहूर शायरी: तेरा चुप रहना मिरे ज़ेहन में क्या बैठ गया

Tahzeeb Hafi


तेरा चुप रहना मिरे ज़ेहन में क्या बैठ गया

इतनी आवाज़ें तुझे दीं कि गला बैठ गया


यूँ नहीं है कि फ़क़त मैं ही उसे चाहता हूँ

जो भी उस पेड़ की छाँव में गया बैठ गया


इतना मीठा था वो ग़ुस्से भरा लहजा मत पूछ

उस ने जिस जिस को भी जाने का कहा बैठ गया


अपना लड़ना भी मोहब्बत है तुम्हें इल्म नहीं

चीख़ती तुम रही और मेरा गला बैठ गया


उस की मर्ज़ी वो जिसे पास बिठा ले अपने

इस पे क्या लड़ना फुलाँ मेरी जगह बैठ गया


बात दरियाओं की सूरज की न तेरी है यहाँ

दो क़दम जो भी मिरे साथ चला बैठ गया


बज़्म-ए-जानाँ में नशिस्तें नहीं होतीं मख़्सूस

जो भी इक बार जहाँ बैठ गया बैठ गया


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