Subscribe Us

अम्मार इक़बाल की ग़ज़ल: रंग-ओ-रस की हवस और बस


अम्मार इक़बाल की ग़ज़ल: रंग-ओ-रस की हवस और बस


रंग-ओ-रस की हवस और बस
मसअला दस्तरस और बस

यूँ बुनी हैं रगें जिस्म की
एक नस टस से मस और बस

सब तमाशा-ए-कुन ख़त्म शुद
कह दिया उस ने बस और बस

क्या है माबैन-ए-सय्याद-ओ-सैद
एक चाक-ए-क़फ़्स और बस

उस मुसव्विर का हर शाहकार
साठ पैंसठ बरस और बस


प्रत्येक शेर का अर्थ

जीवन की इच्छाएँ भौतिक सुखों तक सीमित हैं।
हर समस्या इनकी पहुँच में निहित है।

शरीर की नसें नाजुक हैं।
एक छोटी चोट से सब प्रभावित हो जाता है।

ब्रह्मांड खुदा के 'बस' कहने से खत्म हो जाता है।
सृष्टि का अंत सरल है।

शिकारी और शिकार में फर्क पिंजरे की दरार जितना है।
भूमिकाएँ आसानी से बदलती हैं।

खुदा की हर रचना 60-65 वर्ष चलती है।
जीवन की अवधि सीमित है।

 ग़ज़ल में प्रयुक्त प्रमुख उर्दू शब्दों के अर्थ
  • रंग-ओ-रस: रंग (color) और रस (juice/essence या जीवन का सार)।
  • हवस: लालसा या इच्छा (desire/greed)।
  • मसअला: समस्या या मुद्दा (issue/problem)।
  • दस्तरस: पहुँच या उपलब्धता (access/reach)।
  • रगें: रक्त वाहिकाएँ या नसें (veins/arteries)।
  • जिस्म: शरीर (body)।
  • तमाशा-ए-कुन: सृष्टि का तमाशा या 'हो जा' का खेल (spectacle of creation)।
  • ख़त्म शुद: समाप्त हो गया (ended/finished)।
  • मुसव्विर: चित्रकार या सृष्टिकर्ता (painter/creator)।
  • शाहकार: उत्कृष्ट कृति (masterpiece)।

Post a Comment

0 Comments