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तहज़ीब हाफी के शेर-ओ-शायरी: जिंदगी की हकीकत और मोहब्बत की दास्तान

 

Tahzeeb Hafi

सब परिंदों से प्यार लूंगा मैं पेंड़ का रूप धार लूंगा मैं तू अगर निशाने पर आ भी जाए तो कौन सा तीर मार लूंगा मैं


मैंने जो कुछ भी सोचा हुआ है मैं वो वक्त आने पे कर जाऊंगा तुम मुझे जहर लगते हो और मैं किसी दिन तुम्हें पी के मर जाऊंगा


ये एक बात समझने में रात हो गई मैं उससे जीत गया या मात हो गई


उसके हाथों में जो खंजर है वो ज्यादा तेज है और फिर बचपन से ही उसका निशाना तेज है आज उसके गाल चूमे हैं तो अंदाजा हुआ चाय अच्छी है... थोड़ा सा मीठा तेज है


मोहब्बत में जो सुन रखा था वैसा कुछ नहीं होता, कि इसमें बांदा मरता है ज्यादा कुछ नहीं होता चलो माना कि मेरा दिल मेरे महबूब का घर है पर उसके पीछे उसके घर में क्या-क्या कुछ नहीं होता

यह फिल्मों में ही सबको प्यार मिल जाता है आखिर में मगर सचमुच में इस दुनिया में ऐसा कुछ नहीं होता
मेरी गुरबत ने मुझेसे मेरी दुनिया छीन ली ‘हाफी’ मेरी अम्मा तो कहती थी कि पैसा कुछ नहीं होता




ज़ेहन से यादों के लश्कर जा चुके
वो मेरी महफ़िल से उठ कर जा चुके

मेरा दिल भी जैसे पाकिस्तान है
सब हुकूमत करके बाहर जा चुके




हम तुम्हारे गम से बाहर आ गए
हिज्र से बचने के मंतर आ गये

मैने तुमको अंदर आने का कहा
तुम तो मेरे दिल के अंदर आ गए

एक ही औरत को दुनिया मानकर इतना घुमा हूं के चक्कर आ गए




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