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अम्मार इक़बाल की ग़ज़ल: अक्स कितने उतर गए मुझ में

 

Ammar Iqbal

अम्मार इक़बाल की ग़ज़ल: अक्स कितने उतर गए मुझ में


अक्स कितने उतर गए मुझ में
फिर न जाने किधर गए मुझ में

मैं ने चाहा था ज़ख़्म भर जाएं
ज़ख़्म ही ज़ख़्म भर गए मुझ में

मैं वो पल था जो खा गया सदियां
सब ज़माने गुज़र गए मुझ में

ये जो मैं हूँ ज़रा सा बाक़ी हूँ
वो जो तुम थे वो मर गए मुझ में

मेरे अंदर थी ऐसी तारीकी
आ के आसेब डर गए मुझ में

पहले उतरा मैं दिल के दरिया में
फिर समुंदर उतर गए मुझ में

कैसा मुझ को बना दिया 'अम्मार'
कौन सा रंग भर गए मुझ में


प्रत्येक शेर का अर्थ

कितने प्रतिबिंब मुझ में समा गए।
फिर पता नहीं कहाँ खो गए मुझ में।

मैंने चाहा था कि घाव भर जाएं।
पर घाव ही घाव मुझ में भर गए।

मैं वह पल था जिसने युग खा लिए।
सारे ज़माने मुझ में गुजर गए।

मैं जो हूँ, अब बस थोड़ा बाकी हूँ।
तुम जो थे, वो मुझ में मर गए।

मेरे अंदर ऐसी अंधेरी थी।
भूत-प्रेत भी डर गए मुझ में।

पहले मैं दिल के दरिया में उतरा।
फिर समंदर मुझ में समा गए।

कैसा बना दिया मुझे, 'अम्मार'।
कौन सा रंग मुझ में भर गया।


ग़ज़ल में प्रयुक्त प्रमुख उर्दू शब्दों के अर्थ

  • अक्स: प्रतिबिंब (reflection/image)।
  • ज़ख़्म: घाव (wound)।
  • सदियां: युग (centuries/ages)।
  • ज़माने: ज़माने (times/eras)।
  • तारीकी: अंधेरा (darkness)।
  • आसेब: भूत-प्रेत (ghosts/spirits)।
  • दरिया: नदी (river)।
  • समुंदर: समुद्र (ocean)।
  • रंग: रंग (color)।
  • बाक़ी: शेष (remaining)।

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